किसी व्यक्ति द्वारा रिट् याचिका प्रस्तुत किये जाने पर उसे सुने जाने का कोई अधिकार नहीं होगा, यदि वह किसी आदेश/कार्यवाही से व्यक्तिगत रूप से प्रभावित न होता हो या उसके मौलिक अधिकारों का अतिक्रमण या उल्लंघन न होता हो।
’मनरेगा (महात्मा गॉधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी) अधिनियम ’ के अंतर्गत नियुक्त लोकपाल सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अध्यधीन है।
प्रक्रिया सम्बन्धी त्रुटियों तथा अनियमितताओं, जिनका समाधान संभव है, को मूल अधिकारों को विफल करने अथवा अन्याय का कारक बनने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
माध्यस्थम् अधिकरण साक्ष्यों का विशेषज्ञ है तथा तथ्यों के निष्कर्ष जो मध्यस्थों द्वारा अभिलेख पर उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर निकाले जाते हैं, उनकी जांच इस तरह नहीं की जानी चाहिए जैसे कि न्यायालय द्वारा अपील में सुनवाई किया जा रहा है।
वर्तमान मामला दुर्लभ से दुर्लभतम मामले की श्रेणी में नहीं आता है, जिसमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के अनुसार कानून के स्थापित सिद्धांत के मद्देनजर मौत की सजा दी जा सकती है।
न्यायालय अवमान अधिनियम, 1971 की धारा 19 के अधीन अपील केवल अवमानना के लिए दण्ड अधीरोपित कये जाने वाले आदेश के विरुद्ध की जा सकती है ।
जाति छानबिन समिति को अर्द्ध न्यायिक प्राधिकरण के समान कार्य करना होता है, जिसके लिए न केवल प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतो का पालन करना आवष्यक है बल्कि एकत्रित किये गये प्रत्येक तथ्यों को भी उस व्यक्ति को प्रकट करना जरूरी है, जिसके विरूद्ध जाॅच चल रही है।
1. रॉयल्टी अधिरोपण के उद्देश्य से 'वैनेडियम मल/गाद' को खनिज होना नहीं कहा जा सकता है।
2.वैनेडियम मल/गाद एक खनिज नहीं है क्योंकि यह बॉक्साइट खनिज के रिफाइनरियों में एल्यूमिना में प्रसंस्करण के
दौरान बॉक्साइट से अशुद्धियों को हटाने की प्रक्रिया का परिणाम है।
मृत्युकालिक कथन को स्वीकार करते समय न्यायालय को अत्यन्त सावधानी के साथ यह सुनिश्चित करना चाहिये कि उसे रिश्तेदारों या विवेचना प्राधिकारियों के बिना किसी दबाव के, स्वेच्छापूर्वक, सत्यता के साथ, चेतन मनःस्थिति में किया गया है। केवल तभी ऐसे मृत्युकालिक कथन को दोषसिद्धि के लिये विश्वसनीय आधार माना जावेगा।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 अंतर्गत, किसी पक्षकार द्वारा अपने ही साक्षी की प्रतिपरीक्षा करने सम्बन्धी अनुमति देना इस बात पर निर्भर नही है कि ऐसे साक्षी को 'प्रतिकूल' या 'पक्षद्रोही' साक्षी द्योषित किया जाए ।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 482 अंतर्गत अग्रिम जमानत के प्रावधानों को पूर्ववर्ती दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 की तुलना में विस्तारित कर दिया गया हैं।
महालेखाकार कार्यालय, सेवानिवृत्त शासकीय कर्मचारी की सेवानिवृत्ति की तिथि से छः माह की अवधि के पश्चात्, सेवानिवृत्ति देय से ऋणात्मक शेष की राशि को समायोजन द्वारा वसूल/समायोजित नहीं कर सकता है, इसके लिए शासन को सिविल न्यायालय में जाने की कानूनी प्रक्रिया का पालन करना होगा।
अधिवक्ता परिषद के सदस्यों में से नियुक्त राज्य सूचना आयुक्त अधिवार्षिकी पेंशन पाने का हकदार नहीं है।
शासन वैद्यानिक नियमों को प्रशासनिक निदेशों द्वारा संशोधित या प्रतिस्थापित नहीं कर सकता, प्रशासनिक
निदेशों का प्रयोग केवल नियम की कमी को दूर करने या उसकी प्रतिपूर्ति करने में किया जा सकता है।
1. नियमित एवं स्वीकृत पद पर नियुक्त किसी परिवीक्षाधीन कर्मचारी को केवल "उसकी सेवाओं की आवश्यकता नहीं
है" कहकर सेवा से हटाया नहीं जा सकता।
2. याचिका में उठाये गए तथ्यों एवं आधारों को ध्यान मे रखकर न्यायालय द्वारा इस प्रश्न का विनिश्चयन किया जा
सकता है कि "क्या सेवा समाप्ति आदेष जिसके द्वारा कर्मचारी को सेवा से हटाया गया है कि प्रकृति सामान्य या
दण्डात्मक है" ।