आदेश क्रमांक 1035/गोपनीय/2025 बिलासपुर, दिनांक 12 अगस्त 2025।
निविदा सूचना क्रमांक 16141/सीपीसी/2025 बिलासपुर, दिनांक 12 अगस्त 2025।(08 एलआईयू 12-
पोर्ट लोडेड, 12 ओएफसी मॉड्यूल और 12 ओएफसी पैच
कॉर्ड 3 मीटर एससी-एलसी डीलिंक)
अधिसूचना क्रमांक 1032/गोपनीय/2025 बिलासपुर, दिनांक 11 अगस्त 2025।
माननीय न्यायमूर्ति श्री रवींद्र कुमार
अग्रवाल के छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में 11.08.2025 को प्रातः 10:30 बजे मुख्य न्यायाधीश के न्यायालय में शपथ ग्रहण समारोह के संबंध में सूचना।
स्टाफ कार ड्राइवर के पद पर भर्ती के लिए 03/08/2025 को आयोजित लिखित परीक्षा की टेबुलेशन शीट।
स्टाफ कार चालक के पद पर भर्ती के लिए कौशल परीक्षा हेतु योग्य उम्मीदवारों की सूची।
03/08/2025 को स्टॉफ कार ड्राईवर के पद पर भर्ती हेतु आयोजित लिखित परीक्षा की टेबूलेशन शीट।
स्टॉफ कार ड्राईवर के पद पर भर्ती हेतु कौशल परीक्षा के लिए पात्र अभ्यर्थियों की सूची।
अधिसूचना क्रमांक. 15708/एससीडीएसए/2025 बिलासपुर, दिनांक 07 अगस्त 2025।
अधिसूचना क्रमांक 15687/चेकर बिलासपुर, दिनांक 07 अगस्त 2025।
अधिसूचना क्रमांक 1024/गोपनीय/2025 बिलासपुर, दिनांक 06 अगस्त 2025।
निविदा संख्या 15404/सीपीसी/2025 बिलासपुर, दिनांक 06 अगस्त 2025. (ट्रांसमीटर और रिसीवर (एचडीएमआई-ईथरनेट) की खरीद/आपूर्ति/परीक्षण और स्थापना हेतु)
विधिक सेवा अधिवक्ताओं के पैनल में नामांकन के संबंध में अधिसूचना।
पृष्ठांकन क्रमांक 15390/चेकर बिलासपुर, दिनांक 05 अगस्त 2025।
परिपत्र क्रमांक 276(Mis.) बिलासपुर, दिनांक 05 अगस्त 2025।
निविदा क्रमांक 15228/सीपीसी/2025 बिलासपुर, दिनांक 04 अगस्त 2025।
निविदा क्रमांक 15227/सीपीसी/2025 बिलासपुर, दिनांक 04 अगस्त 2025।
आदेश क्रमांक 15229/सीपीसी/2025 बिलासपुर, दिनांक 04 अगस्त 2025।
निविदा क्रमांक 14443/सीपीसी/2025, 14444/सीपीसी/2025, और 14461/सीपीसी/2025 के संबंध में सूचना।
पृष्ठांकन क्रमांक 14921/चेकर बिलासपुर, दिनांक 01 अगस्त 2025।
आगामी 13 सितम्बर 2025 को आयोजित होने वाली राष्ट्रीय लोक अदालत की प्री-सिटिंग बैठक के सम्बन्ध में।
उच्च न्यायालय और जिला न्यायपालिका के लिए विभिन्न निविदाएं आमंत्रित की जाती हैं।
आदेश क्रमांक 58 (App.) बिलासपुर, दिनांक 24 जुलाई 2025।
आदेश क्रमांक 59 (App.) बिलासपुर, दिनांक 24 जुलाई 2025।
आदेश क्रमांक 60 (App.) बिलासपुर, दिनांक 24 जुलाई 2025।
आदेश क्रमांक 61 (App.) बिलासपुर, दिनांक 24 जुलाई 2025।
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय, बिलासपुर में 28.07.2025 से अनुपूरक पीठों का गठन।
पृष्ठांकन क्रमांक 13869/चेकर बिलासपुर, दिनांक 23 जुलाई 2025।
परिपत्र क्रमांक 13862/विजिलेंस/2025 बिलासपुर, दिनांक 23 जुलाई 2025।
आदेश क्रमांक 13812 बिलासपुर, दिनांक 22 जुलाई 2025।
सूचना क्रमांक 896/गोपनीय बिलासपुर, दिनांक 22 जुलाई 2025।
पृष्ठांकन क्रमांक 898/गोपनीय बिलासपुर, दिनांक 22 जुलाई 2025।
अधिसूचना क्रमांक 13749/चेकर बिलासपुर, दिनांक 22 जुलाई 2025।
पृष्ठांकन क्रमांक 13654/चेकर बिलासपुर, दिनांक 21 जुलाई 2025।
सूचना क्रमांक 13645 बिलासपुर, दिनांक 21 जुलाई 2025। ( स्टॉफ कार ड्राईवर के पद के लिए)
स्टॉफ कार ड्राईवर के पद हेतु लिखित परीक्षा के लिये प्रवेश-पत्र।
पत्र क्रमांक 13317 बिलासपुर, दिनांक 17 जुलाई 2025. (हाई कोर्ट कॉलोनी, रहंगी के एच-टाइप शासकीय आवासीय भवन के आवंटन के संबंध में)
पत्र क्रमांक 13319 बिलासपुर, दिनांक 17 जुलाई 2025. (हाई कोर्ट कॉलोनी, रहंगी के I-टाइप शासकीय आवासीय भवन के आवंटन के संबंध में)
पत्र क्रमांक 13148 बिलासपुर, दिनांक 07 जुलाई 2025। (हाई कोर्ट कॉलोनी, रहंगी के जी-टाइप शासकीय आवासीय भवन के आवंटन के संबंध में)
आदेश क्रमांक 250(मिस.) बिलासपुर, दिनांक 15 जुलाई 2025।
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय बिलासपुर दिनांक 15.07.2025 से प्रभावी रोस्टर।
महत्वपूर्ण सूचना
परिपत्र क्रमांक 17327 बिलासपुर, दिनांक 23 अक्टूबर 2024।
परिपत्र क्रमांक 181 बिलासपुर, दिनांक 17 अक्टूबर 2024।
परिपत्र क्रमांक 123/डी.ई. बिलासपुर, दिनांक 17 अक्टूबर 2024।
आदेश क्रमांक 135 बिलासपुर, दिनांक 21 अगस्त 2024।
परिपत्र क्रमांक 609/गोपनीय/2024 बिलासपुर, दिनांक 24 जून 2024।
द्वितीय कारण बताओ सूचना में पूर्ववृत्त पर आश्रय का उल्लेख न किया जाना भारत के संविधान के अनुच्छेद 311(2) का उल्लंघन है, जहां पूर्ववृत सजा का आधार हो।
अभियोजन एजेंसी द्वारा घोर विसंगतियाँ और चूकें पूरी तरह से अस्वीकार्य हैं; विचारण न्यायालय को अभियोजन और जाँच एजेंसियों की कार्रवाइयों पर सावधानीपूर्वक निगरानी रखने का निर्देश दिया जाता है ताकि आरोपी को अभियोजन की चूकों से अनुचित लाभ न मिले, एक निष्पक्ष विचारण सुनिश्चित हो, और विधि के शासन और उचित प्रक्रिया की गरिमा को बनाए रखा जा सके।
यह कानूनी दायित्व है कि आरोप विरचित करने के प्रारंभिक चरण में, मात्र अनुमान, कल्पना व क्लिष्ट कल्पित आधार पर हस्तक्षेप न किया जाए, कानून में यह अभियुक्तों के विरूद्ध विचारण कार्यवाही को बाधित करने के समान है।
"निजता एक संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकार है, जो मुख्यतः भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता की गारंटी से उत्पन्न होता है। इसमें व्यक्तिगत अंतरंगता, पारिवारिक जीवन की पवित्रता, विवाह, संतानोत्पत्ति, गृह एवं लैंगिक अभिविन्यास का संरक्षण शामिल है। इस अधिकार में किसी भी प्रकार का अनाहूत हस्तक्षेप व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।"
छत्तीसगढ़ माध्यस्थम् अधिकरण अधिनियम, 1983 के लागू होने के दृष्टिगत उसके क्षेत्राधिकार के संबंध में आपत्ति, माध्यस्थम् कार्यवाही पूर्ण होकर पंचाट पारित हो जाने के बाद नहीं की जा सकती।
पुजारी देव स्थल की सम्पत्ति का संचालन करने हेतु एक अनुदान प्राप्तकर्ता मात्र है और ऐसे अनुदान को वापस लिया जा सकता है यदि पुजारी उसे सौपा गया कार्य करने अर्थात प्रार्थना (पूजा-पाठ) करने में विफल रहता है । अतः उसे भूमिस्वामी नहीं माना जा सकता है ।
“उत्कृष्ट (स्टर्लिंग) साक्षी' का साक्ष्य, जो उच्च गुणवत्ता और क्षमता वाली
हो, बिना अतिरिक्त सम्पुष्टि की आवश्यकता के स्वीकार की जा सकती है।”
"जब विनियमों के अंतर्गत मध्यस्थम् खंड का व्यापक उपचार मौजूद हो, तब सिविल
विवाद का मामला आपराधिक विवाद में परिवर्तित नहीं किया जा सकता, यह कानून की प्रक्रिया का दुरूपयोग होगा।"
आदेश 16 नियम 2 सी.पी.सी. पक्षकारों को सुसंगता के अधीन साक्षी को समन जारी
कराने अथवा समन के लिए आवेदन दिए बिना साक्षी को, साक्ष देने या दस्तावेज पेश करने के लिए, प्रस्तुत करने की
स्वतंत्रता है।
आदेश 17 नियम 1 सी.पी.सी. त्वरित न्याय, समय पर न्याय और न्याय का समय पर
प्रदान किया जाना पक्षकार का विधिक अधिकार है। यदि पर्याप्त कारण दर्शित किए जाएं तो न्यायालय समय प्रदान कर
सकता है और मामले की सुनवाई स्थगित कर सकता है, परंतु यह अधिकतम तीन बार तक ही सीमित है।
अनुकंपा नियुक्ति एक रियायत है, अधिकार नहीं। स्वीकृति के बाद पद परिवर्तन या
पदोन्नयन का दावा अस्वीकार्य है। ऐसे मामलों में न्यायिक समीक्षा सीमित है।
" कर्मचारी, जो स्वयं अपराध में लिप्त रहा हो किन्तु बाद में दोषमुक्त किया
गया हो वह बकाया वेतन प्राप्त करने का हकदार नहीं है, क्योंकि उसने दोषसिद्धि या जेल में कैद के आधार पर स्वयं
को सेवा प्रदान करने से निर्योग्य कर लिया था। "
कारण बताओं नोटिस के आधार पर पेंशन से वसूली नहीं किया जा सकता, तथापि, ऐसा
आदेश तभी किया जा सकता है, जब संबंधित कर्मचारी किसी विभागीय या न्यायिक कार्यवाही में दोषी पाया जाता है।.
न्यायालय किसी नाबालिग गवाह की गवाही पर भरोसा कर सकता है और यदि वह
विश्वसनीय, सत्य है तथा रिकार्ड पर लाए गए अन्य साक्ष्यों से उसकी पुष्टि होती है तो वह दोषसिद्धि का आधार बन
सकता है।
यदि मामले के अभिलेख में प्रदर्शित परिस्थितियों की समग्रता से यह पता चलता है कि अभियोक्ता के पास आरोपित
व्यक्ति को झूठा फंसाने का कोई मजबूत मकसद नहीं है, तो न्यायालय को सामान्यतः उसके साक्ष्य को स्वीकार करने
में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए।
यदि नियम जनसाधारण के हित के लिए बनाए जाते हैं और इन नियमों से किसी व्यक्ति विशेष को कठिनाई होती है तो यह
उक्त नियमों को निष्प्रभावी करने का आधार नहीं हो सकता ।
वैधानिक प्राधिकारी को सेवा के निबंधन एवं शर्तों के साथ-साथ किसी पद विशेष के लिए आवश्यक योग्यताएं करने हेतु
वैधानिक नियम बनाने का अधिकार है।
एक आरोपी द्वारा दिया गया इकबालिया बयान दूसरे आरोपी के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं है और इसका इस्तेमाल दूसरे
आरोपी के खिलाफ तभी किया जा सकता है जब दूसरे आरोपी के खिलाफ अन्य सबूत उपलब्ध हों और अदालत को लगता है कि
अपराध की स्वीकारोक्ति का इस्तेमाल अन्य सबूतों के समर्थन में किया जाना चाहिए, तभी अपराध की स्वीकारोक्ति का
इस्तेमाल दूसरे आरोपी के खिलाफ किया जा सकता है।
सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 14 के तहत दायर आवेदन को तभी स्वीकार किया जाना चाहिए यदि आवेदन
असाधारण परिस्थितियों को दर्शित करता है, क्योंकि यह एक औपचारिकता मात्र नहीं है ।
'सरकार के प्रसाद पर्यंत' अंतर्गत पद धारित करने वाले व्यक्ति को
उसके पद से किसी भी समय बिना नोटिस के, बिना कारण समनुदेशित
किए तथा हटाये जाने के कारण बताये जाने की आवश्यकता के बिना
पदच्युत किया जा सकता है।
’मनरेगा (महात्मा गॉधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी) अधिनियम ’ के अंतर्गत नियुक्त लोकपाल सूचना का
अधिकार अधिनियम, 2005 के अध्यधीन है।
प्रक्रिया सम्बन्धी त्रुटियों तथा अनियमितताओं, जिनका समाधान संभव है, को मूल अधिकारों को विफल करने अथवा
अन्याय का कारक बनने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
वर्तमान मामला दुर्लभ से दुर्लभतम मामले की श्रेणी में नहीं आता है, जिसमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय के
निर्णयों के अनुसार कानून के स्थापित सिद्धांत के मद्देनजर मौत की सजा दी जा सकती है।
न्यायालय अवमान अधिनियम, 1971 की धारा 19 के अधीन अपील केवल अवमानना के लिए दण्ड अधीरोपित कये जाने वाले
आदेश के विरुद्ध की जा सकती है ।
जाति छानबिन समिति को अर्द्ध न्यायिक प्राधिकरण के समान कार्य करना होता है, जिसके लिए न केवल प्राकृतिक
न्याय के सिद्धांतो का पालन करना आवष्यक है बल्कि एकत्रित किये गये प्रत्येक तथ्यों को भी उस व्यक्ति को प्रकट
करना जरूरी है, जिसके विरूद्ध जाॅच चल रही है।
1. रॉयल्टी अधिरोपण के उद्देश्य से 'वैनेडियम मल/गाद' को खनिज होना नहीं कहा जा सकता है।
2.वैनेडियम मल/गाद एक खनिज नहीं है क्योंकि यह बॉक्साइट खनिज के रिफाइनरियों में एल्यूमिना में प्रसंस्करण के
दौरान बॉक्साइट से अशुद्धियों को हटाने की प्रक्रिया का परिणाम है।
मृत्युकालिक कथन को स्वीकार करते समय न्यायालय को अत्यन्त सावधानी के साथ यह सुनिश्चित करना चाहिये कि उसे
रिश्तेदारों या विवेचना प्राधिकारियों के बिना किसी दबाव के, स्वेच्छापूर्वक, सत्यता के साथ, चेतन मनःस्थिति
में किया गया है। केवल तभी ऐसे मृत्युकालिक कथन को दोषसिद्धि के लिये विश्वसनीय आधार माना जावेगा।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 अंतर्गत, किसी पक्षकार द्वारा अपने ही साक्षी की प्रतिपरीक्षा करने सम्बन्धी
अनुमति देना इस बात पर निर्भर नही है कि ऐसे साक्षी को 'प्रतिकूल' या 'पक्षद्रोही' साक्षी द्योषित किया जाए ।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 482 अंतर्गत अग्रिम जमानत के प्रावधानों को पूर्ववर्ती दण्ड
प्रक्रिया संहिता की धारा 438 की तुलना में विस्तारित कर दिया गया हैं।
महालेखाकार कार्यालय, सेवानिवृत्त शासकीय कर्मचारी की सेवानिवृत्ति की तिथि से छः माह की अवधि के पश्चात्,
सेवानिवृत्ति देय से ऋणात्मक शेष की राशि को समायोजन द्वारा वसूल/समायोजित नहीं कर सकता है, इसके लिए शासन को
सिविल न्यायालय में जाने की कानूनी प्रक्रिया का पालन करना होगा।
अधिवक्ता परिषद के सदस्यों में से नियुक्त राज्य सूचना आयुक्त अधिवार्षिकी पेंशन पाने का हकदार नहीं है।
शासन वैद्यानिक नियमों को प्रशासनिक निदेशों द्वारा संशोधित या प्रतिस्थापित नहीं कर सकता, प्रशासनिक
निदेशों का प्रयोग केवल नियम की कमी को दूर करने या उसकी प्रतिपूर्ति करने में किया जा सकता है।
1. नियमित एवं स्वीकृत पद पर नियुक्त किसी परिवीक्षाधीन कर्मचारी को केवल "उसकी सेवाओं की आवश्यकता नहीं
है" कहकर सेवा से हटाया नहीं जा सकता।
2. याचिका में उठाये गए तथ्यों एवं आधारों को ध्यान मे रखकर न्यायालय द्वारा इस प्रश्न का विनिश्चयन किया जा
सकता है कि "क्या सेवा समाप्ति आदेष जिसके द्वारा कर्मचारी को सेवा से हटाया गया है कि प्रकृति सामान्य या
दण्डात्मक है" ।