माननीय राज्यपाल श्री शेखर दत्त जी, देवियों और सज्जनों, जय जोहार, नमस्ते, सभी न्यायाधीशों के पास कानून की डिग्री है। वे कानून के जानकार हैं। जिस न्यायिक अकादमी की भवन का आज शिलान्यास किया है उनका चयन प्रतियोगी परीक्षा के बाद होता है । वे सभी उत्तम हैं। फिर, इस प्रशिक्षण संस्थान की क्या आवश्यकता? क्या जरूरत है इतना पैसा खर्चा करने की?
सोलॉमन
(अरबी
में सुलेमान)
सन्
970 से
931 ईसा
पूर्व से इज़राईल का राजा था
वह बुद्घिमान था,
न्यायप्रिय
था।
एक दिन एक ही घर में रहने वाली दो महिलाएं उनके पास एक बच्चे के साथ आईं। दोनों उस बच्चे की माँ होने का दावा कर रही थीं। उनमें से एक ने कहा रात में जब वह सो रही थी तब, दूसरी ने, अपने मरे बच्चे को उसके बच्चे से बदल दिया। दूसरी ने इस बात से इंकार किया और बोली कि मरा हुआ बच्चा पहली महिला का है। कुछ विचार विमर्श उपरांत सुलेमान ने एक तलवार मंगाई और कहा कि निष्पक्ष रहने के लिये यह आवश्यक है कि बालक को दो हिस्सों में काट दिया जाए, और प्रत्येक महिला को आधा भाग दिया जाए। यह सुनने के पश्चात् एक महिला ने कहा, 'महाराज, टुकड़े करने से तो यह मर जायगा। इसे दूसरी महिला को दे दें।' दूसरी ने कहा, 'महराज, अब तो यह मान लिया गया है कि बच्चा मुझे दे दिया जाय तब इसे मुझे देने में क्या संकोच। लेकिन अबभी यदि कोई संशय हो तब निष्पक्षता के लिए, इसे दो टुकड़ों में ही बांटना उचित होगा।' यह सुनने के बाद सुलेमान ने, बच्चे को पहली महिला को दे दिया। क्योंकि असली मां ही अपने बच्चे को मरने नहीं दे सकती। यह सुलेमान के फैसले के नाम से प्रसिद्घ है।
मैं ऐसा कोई कानून का महाविद्यालय नहीं जानता जो सुलेमान की तरह न्याय करने की शिक्षा देता हो। मैं ऐसी किसी प्रतियोगी परीक्षा के बारे में भी नहीं जानता जो सुलेमान की तरह फैसला करने वालों का चयन कर सके। यही कारण है कि कानून की डिग्री होने तथा प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने के बावजूद भी, प्रशिक्षण संस्थान की आवश्यकता है।
अधिकतम न्यायिक अकादमियां दण्ड प्रक्रिया संहिता, व्यवहार प्रक्रिया संहिता, भारतीय दण्ड संहिता जैसे कानून के विधि विषयों में प्रशिक्षण देने पर जोर देती हैं। यह वे विषय हैं जो कि पहले ही पढ़ाये जा चुके होते हैं। लेकिन यह अकादमियां यह सिखाने में असफल रहती हैं कि किस तरह सुलेमान की तरह न्याय किया जाये। हम यह उम्मीद करते हैं कि छत्तीसगढ़ न्यायिक अकादमी न्याय पर अधिक बल देगी न कि कानून पर। यहां से प्रशिक्षित न्यायाधीशों की अदालतें न्याय की अदालत होंगीं न केवल कानून की जानकारी रखने वाली।
बम्बई में, सबसे पहली अंग्रेजी अदालत १६७२ में शुरू हई। राजपाल ऑन्गेर ने इसके उदघाटन पर सही ही कहा, 'Laws though in themselves never so wise and pious are but a dead letter and of little force except there be due and impartial execution of them'. कानून अपने आप में, कभी भी अच्छे और उचित हैं लेकिन वे मरे के समान हैं और उनमें कोई दम नहीं यदि उनका निष्पक्ष क्रियान्वयन न हो।
हमारे प्रयासों के फलस्वरूप, इस वर्ष के मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन में यह संकल्प पारित किया गया है कि न्यायालय के परिसर में सौर ऊर्जा के उपयोग की संभावना पर पहले विचार किया जाये। इस संकल्प के बाद हमारे द्वारा निर्माण किया जाने वाला यह पहला भवन है। इसलिये हमने इसे सौर ऊर्जा से संचालित करने का प्रस्ताव किया है।
इस बात का प्रयत्न किया गया है कि इसका निर्माण इस तरीके से किया जायेगा कि दिन के समय, इसमें पर्याप्त सूरज की रोशनी रहे, गर्मियों में यह ठंडा रहे, और सर्दियों में गर्म—ताकि बिजली की खपत कम हो। यह न केवल प्रशिक्षण में, बल्कि भवन की इमारत में भी, एक मिसाल हो।
इसके लिए धन की आवश्यकता होगी। तेरहवें वित्त आयोग हमें न्यायिक अकादमी की संरचना हेतु 15 करोड़ रूपये दिये हैं। लेकिन, यह राशि अपर्याप्त हो सकती है। हमें कुछ और धन की आवश्यकता पड़ेगी, हमें यह आशा है कि राज्य सरकार इस कमी को पूरा कर देगी और हमें इस भवन को न केवल संरचना, बल्कि प्रशिक्षण तरीकों में भी एक उदाहरण बनने में मदद करेगी।
माननीय राज्यपाल जी यहां उपस्थित हैं और मैं बात समाप्त करने से पहले, उनसे एक परम्परा को बदलने पर विचार करने की प्रार्थना करता हूं।
उत्तरप्रदेश में राज्यपाल द्वारा शपथ हेतु मुख्य न्यायाधीश राजभवन जाते हैं। लेकिन, मुख्य न्यायाधीश द्वारा शपथ हेतु राज्यपाल इलाहाबाद आते हैं। यह विशिष्टता इलाहाबाद की थी परन्तु वहां से यह कोलकाता में गयी। मैं निवेदन करूंगा कि यह परंपरा छत्तीसगढ़ में भी अपनाई जाए। राज्यपाल का न्यायालय में आना, हमेशा इसका गौरव बढ़ाता है।
छत्तीसगढ़ के अगले मुख्य न्यायाधीश की शपथ पर, मैं यहां नहीं होऊँगा पर मैं चाहूंगा कि उनकी शपथ यहां इस उच्च न्यायालय बिलासपुर में हो, न कि राजभवन रायपुर में।
आप का दिन न केवल आप सब के लिये शुभ हो, मंगलमय हो पर उच्च न्यायालय के स्वर्णिम इतिहास में, मील का पत्थर बने। इसी आशा, इसी कामना के साथ। नमस्कार, जय हिन्द।
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